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1. राजस्थान की कौन सी चित्रकला शैली मुगल और राजपूत कला का मिश्रण मानी जाती है?
मेवाड़ चित्रकला
बूँदी चित्रकला
फड़ चित्रकला
किशनगढ़ चित्रकला
Note: किशनगढ़ चित्रकला राजस्थान की एक प्रमुख चित्रकला शैली है, जो मुगल और राजपूत चित्रकला का मिश्रण है। इस शैली में चित्रों में व्यक्तियों के चेहरे लम्बे और खूबसूरत होते हैं, और इनमें कृष्ण-राधा के प्रेम को विशेष रूप से दर्शाया जाता है। यह शैली 18वीं शताब्दी में किशनगढ़ रियासत में विकसित हुई थी, किशनगढ़ शैली के चित्रों को बनी थनी चित्रों के लिए जाना जाता है।

2. राजस्थान के किस स्थान पर आयोजित होने वाला मेला लव-कुश के जीवन से संबंधित है?
शेखावाटी मेला
बनासर मेला
रामदेवरा मेला
सीताबाड़ी मेला
Note: सीताबाड़ी मेला राजस्थान के बारां जिले में आयोजित होता है, और यह रामायण की कहानी से संबंधित है। यह मेला सीता माता और उनके पुत्रों लव और कुश के जीवन से जुड़ा हुआ है। → सीतामाता अभयारण्य में पौराणिक कथाओं के मुताबिक, लव-कुश का जन्म हुआ था. → यहां माता सीता को महर्षि वाल्मीकि ने अपने आश्रम में जगह दी थी. → इसी जगह पर लव-कुश ने हनुमान को बांधा था. → अश्वमेघ यज्ञ के बाद भगवान राम ने अपना घोड़ा छोड़ा था, जिसे लव-कुश ने बांधा था. → सीतामाता मेला हर साल 16 मई से 19 मई के बीच आयोजित होता है.

3. राजस्थान के किस शहर को सिल्क शहर कहा जाता है?
उदयपुर
कोटा
जयपुर
बीकानेर
Note: कोटा अपने उच्च गुणवत्ता के सिल्क और कोटा डोरिया साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है, इसलिए इसे सिल्क शहर कहा जाता है। कोटा-डोरिया साड़ियाँ हल्की और पारदर्शी होती हैं और अपनी बारीक बुनाई के लिए जानी जाती हैं।

4. राजस्थान में किस हस्तकला को कांच की मीनाकारी के रूप में जाना जाता है?
लहेरिया
थेवा कला
ठप्पा छपाई
कोटा डोरिया
Note: थेवा कला राजस्थान की एक अनूठी हस्तकला है, जिसमें कांच पर सोने के महीन काम किए जाते हैं। यह कला मुख्य रूप से प्रतापगढ़ जिले में प्रचलित है और इसका उपयोग आभूषण और सजावटी वस्त्र बनाने में किया जाता है। → थेवा कला के लिए प्रतापगढ़ का राजसोनी परिवार मशहूर है. → थेवा कला के सबसे आकर्षक कार्यों को न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन संग्रहालय, लंदन के भूवैज्ञानिक संग्रहालय, और विक्टोरिया और अल्बर्ट जैसे संग्रहालयों में देखा जा सकता है. → पहले थेवा कला से बने बाक्स, प्लेट, और डिश पर धार्मिक और लोककथाओं की नक्काशी होती थी. → अब थेवा कला का इस्तेमाल आभूषणों के अलावा पेंडेंट, इयर-रिंग, टाई और साड़ी की पिन, कफ़लिंक्स, और फ़ोटो फ़्रेम वगैरह में भी किया जाता है.


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5. राजस्थान की कौन सी पारंपरिक कढ़ाई शैली प्रसिद्ध है, जिसमें कपड़े पर सोने और चाँदी की ज़री के काम का इस्तेमाल होता है?
बंधेज
कांथा
जरदोजी
गोटा-पट्टी
Note: → गोटा-पट्टी राजस्थान की एक पारंपरिक कढ़ाई शैली है, जिसमें कपड़े पर सोने और चाँदी की ज़री से सजावट की जाती है। यह विशेष रूप से शादी और त्योहारों के परिधानों पर किया जाता है। इसमें ज़री रिबन के छोटे-छोटे टुकड़ों को कपड़े पर लगाया जाता है और किनारों को नीचे की ओर सिल दिया जाता है. → गोटा पट्टी को 'लप्पे का काम' या 'गोटा किनारी वर्क' के नाम से भी जाना जाता है. → गोटा पट्टी का इस्तेमाल कपड़े, दुपट्टे, साड़ियों, घाघरा और पगड़ियों पर किया जाता है. → गोटा पट्टी को बनाने में सोने और चांदी का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह विलासिता और स्थिति का प्रतीक है.

6. राजस्थान की पारंपरिक पोशाक में पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले "कुर्ता" को स्थानीय भाषा में क्या कहते हैं?
अंगरखा
ओढ़नी
धोती
बंधेज
Note: → राजस्थान में पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले पारंपरिक कुर्ते को अंगरखा कहते हैं. यह एक साधारण सूती कुर्ते का शानदार संस्करण है. अंगरखा शब्द का शाब्दिक अर्थ है शरीर की रक्षा करना. यह ऊपरी शरीर का परिधान पारंपरिक रूप से सूती कपड़े से बना होता है. → राजस्थान की पारंपरिक पोशाक में पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले अन्य कपड़े: धोती, पगड़ी, साफ़ा.

7. राजस्थान की प्रसिद्ध चित्रकला शैली कौन सी है जिसमें देवी-देवताओं और लोककथाओं को कपड़े पर चित्रित किया जाता है?
मधुबनी चित्रकला
फड़ चित्रकला
पिथौरा चित्रकला
कांगड़ा चित्रकला
Note: → फड़ चित्रकला में, लोक देवताओं की कहानियों को पट्ट-चित्रण और लोक चित्रण के ज़रिए एक लंबे कपड़े या कैनवस पर चित्रित किया जाता है. → इस कपड़े को 'फड़' कहा जाता है. → फड़ चित्रकला में, पाबूजी, देवनारायण, और रामदेवजी जैसे लोक देवताओं के जीवन और कार्यों को दर्शाया जाता है. → फड़ चित्रकला की परंपरा जोशी समुदाय में थी. → साल 1960 में, श्री लाल जोशी ने जोशी कला केंद्र नाम से एक स्कूल खोला, जहां इस कला को सभी को सिखाया जाता है. → आज, यह स्कूल चित्रशाला के नाम से जाना जाता है और यह राजस्थान के भीलवाड़ा शहर में है.

8. राजस्थान के कौन से नृत्य को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल किया गया है?
कच्छी घोड़ी
भवाई
घूमर
कालबेलिया
Note: → राजस्थान के कालबेलिया नृत्य और गीतों को यूनेस्को ने 2010 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया था. यह नृत्य राजस्थान के कालबेलिया समुदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है. इस नृत्य में वेशभूषा और नृत्य की चाल नागों के समान होती है. कालबेलिया नृत्य से जुड़ी कुछ और खास बातेंः → इस नृत्य में पुरुष पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाते हैं और महिलाएं नृत्य करती हैं. → कालबेलिया नृत्य के दौरान नृत्यांगनाएं आंखों की पलक से अंगूठी उठाने, मुंह से पैसे उठाना, उल्टी चकरी खाना जैसी कलाबाज़ियां करती हैं. → इस नृत्य में नृत्यांगनाएं काला घाघरा, चुनरी, और चोली पहनती हैं. → कालबेलिया नृत्य के दौरान बीन और ढफ बजाई जाती है. → कालबेलिया गीत पौराणिक कथाओं से लिए गए हैं. → कालबेलिया समुदाय पहले पेशेवर सांप पकड़ने वाला था. आज यह समुदाय नृत्य के ज़रिए अपनी पहचान मनाता है.


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9. 'पिछवई' कला निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
श्रीकृष्ण से
राम-सीता से
मीराबाई से
महादेव से
Note: - पिछवाई चित्रकला पारंपरिक भारतीय कला का एक रूप है जिसकी उत्पत्ति भारत के राजस्थान के नाथद्वारा शहर में हुई थी। - इसकी उत्पत्ति 400 वर्ष पहले हुई थी। - ये चित्रकारी आमतौर पर कपड़े पर की जाती है और मंदिरों में हिंदू देवी-देवताओं की पृष्ठभूमि के रूप में उपयोग की जाती है। - इन्हें आमतौर पर श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे लटकाया जाता है, जो कृष्ण का एक स्थानीय रूप है और पुष्टिमार्ग पूजा का केंद्र है। - पिछवाई चित्रकला में जटिल डिजाइन और जीवंत रंगों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्यों को दर्शाया जाता है।

10. राजस्थान के कौन से लोक गीत को खेती और ग्रामीण जीवन का प्रतीक माना जाता है?
बन्ना-बन्नी
मांड
लूर
पपिहा
Note: - राजस्थान के लोक गीतों में मांड को खेती और ग्रामीण जीवन का प्रतीक माना जाता है। मांड एक प्रमुख लोक संगीत शैली है, जो राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। इस गीत में राजस्थान की धरती, ग्रामीण जीवन, खेती-बाड़ी, प्रेम, और प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया जाता है। - मांड लोकगीत को अक्सर विभिन्न समारोहों, मेलों, और त्योहारों में गाया जाता है। इसका मधुर स्वर और गीत की सादगी इसे ग्रामीण समाज के निकट लाता है। मांड का संगीत और धुनें राजस्थान के कठोर लेकिन सुंदर ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और उससे जुड़े भावनात्मक पहलुओं को उजागर करते हैं।

11. राजस्थान का कौन सा लोक संगीत वाद्य यंत्र प्रसिद्ध है?
बांसुरी
जोगिया सारंगी
तबला
शहनाई
Note: जोगिया सारंगी अलवर और भरतपुर के जोगियों द्वारा बजाई जाने वाली एक विशेष वाद्य यंत्र है। यह एक झुका हुआ यंत्र है, जिसे आम की लकड़ी के एक टुकड़े से उकेरा गया है। इसमें एक लंबा गुंजायमान शरीर, एक फिंगरबोर्ड (जिस पर उंगलियां तारों को दबाती हैं) और एक चौकोर खूंटी का डिब्बा है, जो तारों को कसने और ढीला करने के लिए उपयोग होता है। इसकी ध्वनि गहरी और भावपूर्ण होती है, जो लोक संगीत में विशेष रूप से प्रचलित है। जोगिया सारंगी राजस्थान की समृद्ध संगीत परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे लोक गायक अपने गीतों में आमतौर पर शामिल करते हैं।

12. किस वाद्य यंत्र को आधे कटे नारियल की कटोरी पर खाल मढ़कर बनाया जाता है?
इकतारा
जंतर
रावण हत्था
सारंगी
Note: रावण हत्था वाद्य यंत्र को आधे कटे नारियल की कटोरी पर खाल मढ़कर बनाया जाता है। रावण हत्था एक भारतीय वाद्य यंत्र है। यह एक प्राचीन मुड़ा हुआ वायलिन है। भारत और श्रीलंका के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में लोकप्रिय है। यह एक प्राचीन भारतीय तानेवाला संगीत वाद्ययंत्र है।


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13. कथकली शास्त्रीय नृत्य किस राज्य से शुरू हुआ था?
महाराष्ट्र
केरल
उत्तर प्रदेश
असम
Note: कथकली शास्त्रीय नृत्य केरल राज्य से शुरू हुआ था। कथकली मालाबार, कोचीन और त्रावणकोर के आस पास प्रचलित नृत्य शैली है। कथकली केरल की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला है।

14. किस सभ्यता की महिलाएं मृण्मय एवं चमकीले पत्थरों की मणियों के आभूषण पहनती थी-
कालीबंगा व बैराठ
कालीबंगा व नोह
कालीबंगा व गणेश्वर
कालीबंगा व आहड़
Note: कालीबंगा व नोह सभ्यता की महिलाएं मृण्मय एवं चमकीले पत्थरों की मणियों के आभूषण पहनती थी

15. राजस्थान के कितने किले विश्व धरोहर में शामिल है?
3
6
8
9
Note: राजस्थान के छह किले आमेर, जैसलमेर, गागरोन, चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़ और रणथंभौर विश्व धरोहर में शामिल है।

16. भारत का एकमात्र विभीषण जी का मंदिर कहाँ स्थित हैं।
सीकर
मण्डोर
पीपाड़ सिटी
कोटा
Note: कोटा, राजस्थान से 16 किमी दूर कैथून कस्बे में भारत का एकमात्र विभीषण जी का मंदिर स्थित हैं।


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17. श्रीमती फलकू बाई, राजस्थान मे किस नृत्य की प्रसिद्ध नत्यांगाना हैं?
ड़ाडिया नृत्य
इण्डोणी नृत्य
घूमर नृत्य
चरी नृत्य
Note: फलकू बाई चरी नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं। चरी नृत्य राजस्थान में कई बड़े समारोहों, त्योहारों, लडके के जन्म पर, शादी के अवसरों के समय किया जाता है।

18. राजस्थान में कौनसा स्थान 'ब्ल्यू पॉटरी' के लिये जाना जाता है?
अलवर
जयपुर
जैसलमेर
जोधपुर
Note: "ब्लू पॉटरी" सांगानेर, जयपुर की प्रसिद्ध है। इस में परम्परागत हरे एवं नीले रंग का प्रयोग होता है। यह अकबर के समय ईरान से लाहौर आयी, इसके बाद राम सिंह प्रथम लाहौर से इसे जयपुर लाये। सर्वाधिक विकास इस कला का राम सिह द्वितीय के समय हुआ।

[REET-2016 ]
19. आभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव किस काल के हैं?
राठौड
चौहान
गुहिल-सिसोदिया
गुर्जर-प्रतिहार
Note: आभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव गुर्जर-प्रतिहार काल के है। गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन एवं मध्यकालीन दौर के संक्रमण काल में साम्राज्य स्थापित करने वाला एक राजपूत राजवंश था, जिसके शासकों ने मध्य-उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर मध्य-8वीं से 11वीं सदी के बीच शासन किया।

[Delhi Forest Guard Exam 2021]
20. बॉल (बाउल) संगीत किस राज्य का है?
महाराष्ट्र
पश्चिम बंगाल
तमिलनाडु
गुजरात
Note: पश्चिम बंगाल में बॉल (बाउल) लोक संगीत है। बाउल भारतीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति के एक विशेष संप्रदाय से संबंधित है। बाउल गीतों का मुख्य उद्देश्य आत्मा का उत्थान और आध्यात्मिक खोज है। बाउल गाने वाले फकीर 'तंत्र-वेद' की प्रणाली में विश्वास करते हैं।


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[RAS/RTS Pre. 2018]
21. किस स्थल से शासक मिनेण्डर के सोलह सिक्के प्राप्त हुए हैं?
नगर
रैढ़
वैराट
नगरी
Note: राजस्थान के जयपुर में स्थित वैराट से मिनेण्डर के 16 सिक्के प्राप्त हुए हैं। प्राचीन काल का विराटनगर ही आज वैराट के नाम से जाना जाता है। रैढ़ से मिनेण्डर के काल का एक अभिलेख प्राप्त हुआ हैं इंडो-यूनानी शासकों में मिनेण्डर का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है।

[RAS/RTS Pre. 1997]
22. 84 खंभों की छतरी कहां पर है?
कोटा
झालावाड़
बूंदी
जयपुर
Note: बूंदी के तारागढ़ किले में 84 खंभों की छतरी, चित्रमहल आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। राजा रामदेव ने बूंदी की स्थापना की थी।

23. बूंदी दुर्ग में बने महलों के बारे में किसने लिखा है कि 'यह महल भूतों प्रेतों द्वारा निर्मित है'-
फर्ग्युसन
किपलिंग
कर्नल टॉड
अबुल फजल
Note:

24. मेहरानगढ़ दुर्ग में किस की मजार स्थित है?
भूरे खां की
अब्दुल्ला खां की
दीवान शाह की
मीरान खां की
Note: मेहरानगढ़ दुर्ग में भूरे खां की मजार स्थित है। भूरे खां 1808 में मेहरानगढ़ किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। उनके मजार पर लोग मन्नत मांगने भी आते हैं। जोधपुर का मेहरानगढ़ किला 120 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस तरह से यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई (73 मीटर) से भी ऊंचा है। वही मेहरानगढ़ दुर्ग के अंदर चामुंडा माता मंदिर तथा राठौड़ों की कुलदेवी नागणेची माता का मंदिर भी स्थित है।


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25. मेवाड़ की आंख किसे कहा जाता है?
अचलगढ़ दुर्ग
कुम्भलगढ़ दुर्ग
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
सज्जनगढ़ दुर्ग
Note: कुम्भलगढ किले को मेवाड की आँख कहते है। यह दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है, जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजय रहा। इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया।

26. वह किला जिसमें एक जैसे नौ महल है?
नाहरगढ़ किला
आमेर किला
जोधपुर किला
जूनागढ़ किला
Note:

27. बादल महल किस दुर्ग में स्थित है?
नाहरगढ़ दुर्ग
जालौर दुर्ग
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
कुम्भलगढ़ दुर्ग
Note:

28. 'गुब्बारा', 'नुसरत', 'नागपली' और 'गजक' नाम है-
मेवाड़ में प्रचलित क्षेत्रीय मिठाइयों के नाम
मारवाड़ी ठिकानों के वस्त्रों के नाम
जोधपुर दुर्ग की तोपो के नाम
मेवाड़ में प्रचलित राजस्व वसूली करो के नाम
Note: मेहरानगढ़ दुर्ग में लंबी दूरी तक मार करने वाली तीन विशालकाय उत्कृष्ट तोपे – किलकिला तोप, शंभू बाण तोप, गजनी खा तोप आदि है। नागपली,नुसरत गजक, गुब्बारा आदि यहां के अन्य प्रसिद्ध तोपे है।


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29. 'घुंघट' 'गूगड़ी' 'बांद्रा' और 'इमली' क्या है?
राजस्थानी खानपान विधियों के नाम
मारवाड़ी लोक परंपरा में जातियों के गोत्रों के नाम
मेवाड़ आंचलित में स्त्रियों के पहनावे के नाम
तारागढ़ अजमेर की प्राचीर की विशाल बुर्जो के नाम
Note:

30. वह किला जिसकी आजादी और अस्मिता की रक्षा के लिए वहां के ठाकुरों ने गोला और बारूद खत्म होने पर चांदी के गोले दागे थे-
केसरोली का किला
लोहागढ़ का किला
जूनागढ़ का किला
चूरू का किला
Note: "चूरू का किला" राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है। इसका निर्माण वर्ष 1694 में ठाकुर कुशल सिंह ने करवाया था। यह किला दुनिया का एकमात्र ऐसा किला है, जहां युद्ध के समय गोला बारूद खत्म हो जाने पर तोप से दुश्मनों पर चांदी के गोले दागे गए थे। यह युद्ध 1814 में चूरू के राजा शिवजी सिंह और बीकानेर के रियासत के राजा सूरत सिंह के मध्य हुआ था।




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